पाप-निवारण
शास्त्रीय विधान से कर्म करे, उन कर्मों को ही कहें धर्म
जिनका निषेध है वेदों में, कहलाते सारे वे अधर्म
अन्तर्यामी सर्वज्ञ प्रभु, करनी को देख रहे सबकी
पापों का प्रायश्चित जो न करे, तो दण्डनीय गति हो उनकी
कल्याणकारी हरि के कीर्तन, जो कर पाये पूरे मन से
पापों का निवारण हो जाये, व हृदय शुद्ध होता उससे
लीला स्वरूप में ध्यान लगे, मन बुद्धि वहाँ तब रम जाये
पावन हो अन्तःकरण जभी, वासना जरा नहीं टिक पाये  

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