सत्य दर्शन
सत्स्वरूप है आत्मा, जो स्वभावतः सत्य
झूठ बाहरी वस्तु है, जो अवश्य ही त्याज्य
धन आसक्ति प्रमादवश, व्यक्ति बोलता झूठ
सत्य आचरण ही करें, प्रभु ना जाए रूठ
छद्म पूर्ण हो चरित तो, कहीं न आदर पाय
कपट शून्य हो आचरण, विश्वासी हो जाय
काम क्रोध व लोभ है, सभी नरक के द्वार
धनोपार्जन में रहे, सात्विक शुद्ध विचार
सद्गुणसद्गुण जीवन में अपनायें
क्या भला बुरा इसका निर्णय, सद्ग्रन्थों से ही मिल पाये
साधु संतों का संग करे, आदर्श उन्हीं का जीवन हो
तब भाव बुरे टिक नहिं पाये, सद्बुद्धि जागृत मन में हो
करुणानिधान प्रभु कृपा करें, जीवन कृतार्थ तब हो जाये
जो कुछ भी सद्गुण दिखें कहीं, उनको हम तत्क्षण अपनायें
जगद्गुरुसद्गुरु का मिलना दुर्लभ है, उद्धार हमारा कैसे हो
जो महापुरुष होते सच में, शायद ही शिष्य बनाते हों
उद्धार शिष्य का कर न सकें, इसलिए मना कर देते हों
भगवान् कृष्ण हैं जगद्गुरु, श्रीभगवद्गीता कहे यही
अर्जुन का मोह विनष्ट किया, वे पूज्य गुरु से बढ़ कर ही