राम रसपान
रसना क्यों न राम रस पीती
षट-रस भोजन पान करेगी, फिर रीती की रीती
अजहूँ छोड़ कुबान आपनी, जो बीती सो बीती
वा दिन की तू सुधि बिसराई, जा दिन बात कहीती
जब यमराज द्वार आ अड़िहैं, खुलिहै तब करतूती
‘रूपकुँवरि’ मन मान सिखावन, भगवत् सन कर प्रीती
राम रसपान
रसना क्यों न राम रस पीती
षट-रस भोजन पान करेगी, फिर रीती की रीती
अजहूँ छोड़ कुबान आपनी, जो बीती सो बीती
वा दिन की तू सुधि बिसराई, जा दिन बात कहीती
जब यमराज द्वार आ अड़िहैं, खुलिहै तब करतूती
‘रूपकुँवरि’ मन मान सिखावन, भगवत् सन कर प्रीती