पुरुषार्थ
पुरुषार्थ करो, बैठे न रहो
जो सोच-विचार करे उद्यम, ईश्वर का नाम हृदय आये
भाग्योदय हो ऐसे जन का, सार्थक जीवन तब हो जाये
उत्साहित हो जो कार्य करे, जीविकोपार्जन कर पाये
ऐसे ही ठाला बैठ रहे, वह तो आखिर में पछताये
वरदान प्रभु का मनुज देह, जो सदुपयोग नहीं कर पाये
वह रहे दरिद्रित आजीवन, पशुवत् अपमानित हो जाये
हो दुरुपयोग जहाँ यौवन का, वह नहीं धनार्जन करवाये
अप्रिय हो जाता घर में भी, जीवन दुखदायी हो जाये
पुरुषार्थ किया जो भगीरथ ने, गंगा को पृथ्वी पर लाये
बालक ध्रुव ने तप किया घोर, ध्रुव लोक राज्य वे ही पाये