कृष्ण कीर्तन
प्रेम हो तो श्री हरि का प्रेम होना चाहिये
जो बने विषयों के प्रेमी उनपे रोना चाहिये
दिन बिताया ऐश और आराम में तुमने अगर
सदा ही सुमिरन हरि का करके सोना चाहिये
मखमली गद्दों पे सोये तुम यहाँ आराम से
वास्ते लम्बे सफर के कुछ बिछौना चाहिये
छोड़ गफलत को अरे मन, पायी जो गिनती की साँस
भोग और विषयों में फँस, इनको न खोना चाहिये
सब जगह बसते प्रभु पर, प्रेम बिन मिलते नहीं
कृष्ण-कीर्तन में लगा मन, मग्न होना चाहिये