प्रबोधन
प्राणिमात्र प्रभु से अनुप्राणित, जड़ चेतन में छाया
सबको अपने जैसा देखूँ, कोई नहीं पराया
जिसने राग द्वेष को त्यागा, उसने तुमको पाया
दंभ दर्प में जो भी डूबा, उसने तुमको खोया
कौन ले गया अब तक सँग में, धरा धाम सम्पत्ति
जो भी फँसा मोह माया में, उसको मिली विपत्ति
दो विवेक प्रभु मुझको कृपया, वैर न हो कोई से
सबसे प्रेम करूँ मैं स्वामी, प्रेम प्राप्त हो उनसे