सर्व शक्तिमान्
प्रभु की सत्ता है कहाँ नहीं
घट घट वासी, जड़ चेतन में, वे सर्व रूप हैं सत्य सही
प्रतिक्षण संसार बदलता है, फिर भी उसमें जो रम जाये
जो नित्य प्राप्त परमात्म तत्व, उसका अनुभव नहीं हो पाये
स्थित तो प्रभु हैं कहाँ नहीं, पर आवृत बुद्धि हमारी है
मन, बुद्धि, इन्द्रियों से अतीत, लीला सब उनकी न्यारी है