भक्त
प्रभु का जो अनुग्रह होता है
सांसारिकता से निवृत्ति हो, हरि का स्वरूप मन भाता है
लीलाओं का वर्णन करते, वाणी गद्गद् हो जाती है
तब रोता है या हँसता है, कभी नाचे या तो गाता है
जब रूप गुणों में तन्मय हो, चित द्रवित तभी हो जाता है
होता है भक्त जो कि, सबको ही पावन करता है