प्रबोधन
मिला है जन्म मानव का, गँवाया किन्तु यौवन को
साथ में कुछ न जायेगा, चेत जा, याद कर प्रभु को
अभी से आत्मचिंतन हो, पढ़ो तुम नित्य गीता को
निदिध्यासन मनन भी हो, छुड़ा दे मोह माया को
साधना के अनेकों पंथ भी, निर्गुण सगुण कोई
श्रेष्ठ पर ज्ञान ही का मार्ग, दिखा सकते गुरू सोई
स्वयं एक बात को समझो, देह नश्वर है यह तो तथ्य
ब्रह्म ही सर्व व्यापक है, सनातन है वही एक सत्य
जला दो भक्ति रूपी योग से, सारे ही कर्मों को
करो सत्संग सन्तों का, मिटा देंगे अविद्या को