विनती
इतना तो करना स्वामी, जब प्राण तन से निकले
गोविन्द नाम लेकर, फिर प्राण तन से निकले
श्री यमुनाजी का तट हो, स्थान वंशी-वट हो
मेरा साँवरा निकट हो, जब प्राण तन से निकलें
श्री वृन्दावन का थल हो, मेरे मुख में तुलसी दल हो
विष्णु-चरण का जल हो, जब प्राण तन से निकलें
मेरा साँवरा निकट हो, मुरली का स्वर भरा हो
तिरछा चरण धरा हो, जब प्राण तन से निकलें
सिर सोहना मुकुट हो, मुखड़े पै काली लट हो
यही ध्यान मेरे घट हो, जब प्राण तन से निकलें
पट-पीत कटि बँधा हो, होठों पे भी हँसी हो
छवि मन में यह बसी हो, जब प्राण तन से निकलें
जब कण्ठ प्राण आवें, कोई रोग ना सतावें
यम त्रास ना दिखावे, जब प्राण तन से निकलें
मेरा प्राण निकले सुख से, तेरा नाम निकले मुख से
बच जाऊँ घोर दुःख से, जब प्राण तन से निकलें
आना अवश्य आना, राधे को साथ लाना
इतनी कृपा तो करना, जब प्राण तन से निकलें

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