गृहस्थ जीवन
गार्हस्थ्य धर्म सर्वोत्तमही
इन्द्रिय-निग्रह व सदाचार, अरु दयाभाव स्वाभाविक ही
सेवा हो माता पिता गुरु की, परिचर्या प्रिय पति की भी हो
ऐसे गृहस्थी पर तो प्रसन्न, निश्चय ही पितर देवता हो
हो साधु, संत, सन्यासी के, जीवनयापन का भी अधार
जहाँ सत्य, अहिंसा, शील तथा, सद्गुण का भी निश्चित विचार