चेतावनी
दिन व्यर्थ ही बीते जाते हैं
जिसने मानव तन हमें दिया, उन करुणा निधि को भुला दिया
जीवन की संध्या वेला में हम ऐसे ही पछताते हैं
घर पुत्र मित्र हे भाई मेरा, माया में इतना उलझ गया
धन हो न पास, जर्जर शरीर, ये कोई काम न आते हैं
दुनियादारी गोरख धंधा, आकण्ठ इसी में डूब रहे
मृगतृष्णा सिवा न कुछ भी ये, केवल हमको भरमाते हैं
बचपन, यौवन, पागलपन में, अनमोल समय सब गँवा दिया
कर्तव्य विमुख हम बने रहे, अब क्या हो, सोच न पाते हैं
जिसके साधे सब सध जाते, यह सत्य अरे क्यों याद नहीं
शरणागत हो जा उन प्रभु के जो भक्तों को अपनाते हैं
हे मानव तुझे विवेक मिला, अब चेत समय जो बचा शेष
आर्तस्तव हो हरि कीर्तन कर, वे बेड़ा पार लगाते हैं 

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