वंदना
चरन-कमल बंदौं हरि राइ
जाकी कृपा पंगु गिरि लंघै, अंधे कौ सब कछु दरसाइ
बहिरो सुनै मूक पुनि बोलै, रंक चलै सिर छत्र धराइ
‘सूरदास’ स्वामी करुनामय, बार-बार बन्दौ तेहि पाइ

3 Responses

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *