समर्पण
अब सौंप दिया इस जीवन को, सब भार तुम्हारे हाथों में
है जीत तुम्हारे हाथो में और हार तुम्हारे हाथों में
मेरा निश्चय बस एक यही, एक बार तुम्हें पा जाऊँ मैं
अर्पण कर दूँ दुनिया भर का, सब प्यार तुम्हारे हाथों में
जो जग में रहूँ तो ऐसे रहूँ, ज्यों जल में कमल का फूल रहे
मेरे गुण दोष समर्पित हों, श्रीकृष्ण तुम्हारें हाथों में
यदि मानव का मुझे जन्म मिले, तो तव चरणों का पुजारी बनूँ
इस पूजक की इक-इक रग का, हो तार तुम्हारे हाथों में
जब जब संसार का कैदी बनूँ, निष्काम भाव से कर्म करूँ
फिर अन्त समय में प्राण तजूँ, भगवान तुम्हारे हाथों में
मुझ में तुम में बस भेद यही, मैं नर हूँ तुम नारायण हो
मैं हूँ संसार के हाथों में, संसार तुम्हारे हाथों में

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *