वन भेजे
यशुमति नँद-नंदन बनवारी
रूप माधुरी कमल-नयन की, अद्वितीय मनहारी
लटकनी चाल, लकुटिया कर में, गौ-वत्स चराने जाये
विद्युत-सी दंतावलि दमके, मनमोहन मुस्काये
ग्वाल-बाल सँग भोजन करते, वन में आज बिहारी
गोलाकार बिराजै बालक, मध्य गोवर्धनधारी
छवि देखने देव देवियाँ, तभी गगन में आये
रूप माधुरी निरख श्याम की, आनँद नहीं समाये
भोजन में तो मग्न सभी, तब सखा एक यों बोला
बछड़े नहीं दिखाई देते सुन मोहन मन डोला
दही भात का कौर लिये हरि, ढूँढ रहे बछड़ों को
विस्मयकारी ऐसी लीला, मुग्ध करे भक्तों को