विरह वेदना
यशोदा, नन्द, गोपीजन, दुखी है विरह पीड़ा से
परम प्यारा सभी का मैं, कहे यो श्याम उद्धव से
उधोजी ब्रज में जाकर के, मिले तब नन्द बाबा से
कभी गोविंद आयेंगे, यों पूछा नन्द ने उनसे
बही तब आँसुओं की धार, यशोदा नन्द नयनों से
रुँध गया कण्ठ दोनों का, बोल ना पाय उधो से
बँधाया धैर्य उद्धव ने, कहा श्रीकृष्ण आयेंगे
कहा था जो मैं आऊँगा, कथन को वे निभायेंगे
कहा है श्यामसुन्दर ने ‘विलग मैं हूँ नहीं तुमसे’
रखो मन पास में मेरे, सुलभ हूँ प्रेम भक्ति से