विरह व्यथा
यद्यपि मन समुझावत लोग
सूल होत नवनीत देखि कै, मोहन के मुख जोग
प्रात-समय ही माखन रोटी, को बिन माँगे दैहे
को मेरे बालक कुँवर कान्ह को, छन छन गोदी लैहे
कहियौ जाय पथिक घर आवैं, राम स्याम दौउ भैया
‘सूर’ वहाँ कत होत दुखारी, जिनके मो सी मैया