उद्धव की वापसी
वृंदावन से उद्धव आये
श्यामसुँदर को गोपीजन के मन की व्यथा सुनाये
कहा एक दिन ‘राधारानी बोलीं श्याम सुजान
बिना दरस मनमोहन के, ये निकले क्यों नहिं प्रान’
इसी भाँति बिलखत दिन जाये, निशा नींद नहिं आये
जाग रही सपना भी दुर्लभ, दर्शन-प्यास सताये
दुख असह्य गोपीजन को भी, करुणा कुछ मन लाओ
दर्शन दो अविलम्ब श्याम तुम, उनके प्राण बचाओ
गुल्मलता ही वृन्दावन की, मुझको आप बनायें
ताकि चरण-रज वृजांगना की, मुझे सुलभ हो जाये