विरह व्यथा
विनती सुनो श्याम मेरी, मैं तो हो गई थारी चेरी
दरसन कारण भई बावरी, विरह व्यथा तन घेरी
तेरे कारण जोगण हूँगी, करूँ नगर बिच फेरी
अंग गले मृगछाला ओढूँ, यो तन भसम करूँगी
‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, वन-वन बीच फिरूँगी
विरह व्यथा
विनती सुनो श्याम मेरी, मैं तो हो गई थारी चेरी
दरसन कारण भई बावरी, विरह व्यथा तन घेरी
तेरे कारण जोगण हूँगी, करूँ नगर बिच फेरी
अंग गले मृगछाला ओढूँ, यो तन भसम करूँगी
‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, वन-वन बीच फिरूँगी