चेतावनी
तन रक्त माँस का ढाँचा है, जो ढका हुआ है चमड़े से
श्रृंगार करे क्या काया का, जो भरी हुई है दुर्गन्धों से
खाये पीये कितना बढ़िया, मल-मूत्र वहीं जो बन जाता
ऐसे शरीर की रक्षा में, दिन रात परिश्रम है करता
मन में जो रही वासनाएँ, वे अन्त समय तक साथ रहें
मृत्योपरांत हो पुनर्जन्म, पशु पक्षी नर का कौन कहे
तूँ मोह पाश में बँधा रहा, तेरी भारी है भूल यही
अब चित्त लगा प्रभु चरणों में, आश्रित का हरते कष्ट वही