बाल कृष्ण माधुर्य
सोभित कर नवनीत लिये
घुटुरुन चलत रेनु तन मंडित, मुख दधि लेप किये
चारू कपोल, लोल लोचन, गोरोचन तिलक दिये
लत लटकनि मनौ मत्त मधुप गन, माधुरि मधुहि पिये
कठुला कंठ वज्र के हरि नख, राजत रुचिर हिये
धन्य ‘सूर’ एकेउ पल यहि सुख, का सत् कल्प जियें