अनूठा रूप
श्याम तुम्हारा रूप अनूठा, कोटि अनंग लजाये
चंचल चितवन कमल-नयन से, प्रेम सरस बरसाये
स्निग्ध कपोल अरुणिमा जिनकी, दर्पण सम दमकाये
मोर-मुकुट शीश पर शोभित, केश राशि लहराये
कमनीय अंग किशोर मूर्ति के, दर्शन मन सरसाये
पान करे गोपीजन प्रति पल, फिर भी नहीं अघाये
ऐसा अद्भुत ज्योति-पुंज जो, मन का तिमिर भगाये
झलक दिखादो हमको प्यारे! धन्य जीवन हो जाये