विरह व्यथा
स्याम बिनु रह्यो न जाय
खान पानमोहि फीको लागे, नैणा रहे मुरझाय
बार बार मैं अरज करूँ छूँ, रैण गई दिन जाय
‘मीराँ’ कहे हरि तुम मिलिया बिन, तरस तरस तन जाय
विरह व्यथा
स्याम बिनु रह्यो न जाय
खान पानमोहि फीको लागे, नैणा रहे मुरझाय
बार बार मैं अरज करूँ छूँ, रैण गई दिन जाय
‘मीराँ’ कहे हरि तुम मिलिया बिन, तरस तरस तन जाय