श्याम की मोहिनी
स्याम बिना यह कौन करै
चित वहिं तै मोहिनी लगावै, नैक हँसनि पै मनहि हरै
रोकि रह्यौ प्रातहिं गहि मारग, गिन करि के दधि दान लियौ
तन की सुधि तबहीं तैं भूली, कछु कहि के दधि लूट लियौ
मन के करत मनोरथ पूरन, चतुर नारि इहि भाँति कहैं
‘सूर’ स्याम मन हर्यौ हमारौ, तिहि बिन कहिं कैसे निबहैं