बंसी की चोरी
श्री राधे प्यारी, दे डारो री बाँसुरी मोरी
काहे से गाऊँ राधे, काहे से बजाऊँ, काहे से लाऊँ गैया घेरि
मुखड़े से गाओ कान्हा, ताल बजावो, चुटकी से लाओ गैया घेरि
या बंशी में मेरो प्राण बसत है, सो ही गई अब चोरी
न तो सोने की, ना ही चाँदी की, हरे बाँस की पोरी
कब से ही ठाड़ो राधा अरज करूँ मैं, कैसी गति हुई मोरी
‘चन्द्रसखी’ भज बालकृष्ण छवि, चिरजीवो ये जोरी