विरह व्यथा
श्री कृष्णचन्द्र मथुरा को गये, गोकुल को आयबो छोड़ दियो
तब से ब्रज की बालाओं ने, पनघट को जायबो छोड़ दियो
सब लता पता भी सूख गये, कालिंदी किनारो छोड़ दियो
वहाँ मेवा भोग लगावत हैं, माखन को खायबो छोड़ दियो
ये बीन पखावज धरी रहैं, मुरली को बजायबो छोड़ दियो
वहाँ कुब्जा संग विहार करें, राधा-गुन गायबो छोड़ दियो
वे कंस को मार भये राजा, गउअन को चरायबो छोड़ दियो
‘सूर’ श्याम प्रभु निठुर भये, हँसिबो इठलाइबो छोड़ दियो