गीतोपदेश
श्री भगवद्गीता दिव्य शास्त्र जिसमें वेदों का भरा सार
वाणी द्वारा इसका माहात्म्य, अद्भुत कोई पाता न पार
भगवान् कृष्ण-मुख से निसृत, यह अमृत इसका पान करे
स्वाध्याय करे जो गीता का, उसके यह सारे क्लेश हरे
मृगतृष्णा-जल जैसी दुनिया, आसक्ति मोह का त्याग करें
कर्तापन का अभिमान छोड़, हम शास्त्र विहित ही कर्म करें
सच्चिदानन्दघन वासुदेव, हैं व्याप्त पूर्णतः सृष्टि में
निष्काम भाव से कर्म करें, हो योग-क्षेम तब प्राप्त हमें

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