शिवशंकर
शंकर तेरी जटा में शोभित है गंग-धारा
काली घटा के अंदर, चपला का ज्यों उजारा
गल मुण्डमाल राजे, शशि शीश पर बिराजे
डमरू निनाद बाजे, कर में त्रिशूल साजे
मृग चर्म वसन धारी, नंदी पे हो सवारी
भक्तों के दुःख हारी, गिरिजा के सँग विहारी
शिव नाम जो उचारे, सब पाप दोष जारे
भव-सिंधु से ‘ब्रह्मानंद’, उस पार शिव उतारे