ब्रज की स्मृति
सखि, सपने में मनमोहन आये
बड़े दुखी है मथुरा में वे, कोई तो समझाये
टप टप आँसू गिरें नयन से, घूम रहे उपवन में
नहीं सँभाल पाते अपने को, व्याकुलता है मन में
कहते प्राणेश्वरी राधिके, निश दिन रहूँ उदास
लोग भले ही कहें यहाँ सुख, झूठ-मूठ विश्वास
तेरे बिना एक पल भी तो, कहाँ चैन है प्यारी
टूट गया राधा का सपना, प्रियतम कातर भारी