हरि दर्शन
सजनवा नैनन मेरे तुमरी ओर
विरह कमण्डल हाथ लिये हैं, वैरागी दो नैन
दरस लालसा लाभ मिले तो, छके रहे दिन रैन
विरह भुजंगम डस गया तन को, मन्तर माने न सीख
फिर-फिर माँगत ‘कबीर’ है, तुम दरशन की भीख
हरि दर्शन
सजनवा नैनन मेरे तुमरी ओर
विरह कमण्डल हाथ लिये हैं, वैरागी दो नैन
दरस लालसा लाभ मिले तो, छके रहे दिन रैन
विरह भुजंगम डस गया तन को, मन्तर माने न सीख
फिर-फिर माँगत ‘कबीर’ है, तुम दरशन की भीख