विस्मरण
सब दिन गये विषय के हेत
तीनों पन ऐसे ही बीते, केस भये सिर सेत
रूँधी साँस, मुख बैन न आवत चन्द्र ग्रसहि जिमि केत
तजि गंगोदक पियत कूप जल, हरि तजि पूजत प्रेत
करि प्रमाद गोविंद, बिसार्यौ, बूड्यों कुटुँब समेत
‘सूरदास’ कछु खरच न लागत, रामनाम सुख लेत