रास लीला
रासोत्सव अति दिव्य हुआ है वृन्दावन में
रमण-रेती यमुनाजी की, हर्षित सब मन में
शरद पूर्णिमा रात्रि, चाँदनी छिटक रही थी
प्रेयसियाँ अनुराग रंग में रंगी हुई थी
मंडल के बीच राधारानी कुंज बिहारी
अभिनय अनुपम, छवि युगल की अति मनहारी
रसमय क्रीड़ा देव देवियाँ मुग्ध हुए हैं
सभी ग्रहों के साथ चन्द्रमा उदित हुए हैं
दो-दो गोपी बीच श्याम तब प्रकट हो गये
सभी स्वर्ग के दिव्य वाद्य भी, स्वतः बज गये
चिन्मय रास-विलास गोपियाँ नृत्य कर रहीं
ठुमक-ठुमक वे भाँति-भाँति से चरण रख रहीं
गा गा कर वे नाच रहीं, रति भी ललचाये
कृष्ण-कन्हैया गोपीजन को हृदय लगावे
कानों के कुण्डल कपोल पर हिल हिल छाये
रोम रोम सब गोपीजन के, तब खिल जाये
चिदानन्दमय यह लीला, भगवान् कृष्ण की
भक्ति सुलभ हो, काम-भावना मिटे हृदय की

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *