होली
रंग डारत लाज न आई, नन्दजी के कुँवर कन्हाई
माखन-चोर रसिक मतवारे, गलियन धूम मचाई,
गुलचे खाये भूल गये क्यों, करन लगे ठकुराई
सखि! वाँको शरम न आई
हाथ लकुटिया काँधे कमरिया, बन बन धेनु चराई,
जाति अहीर सबहिं जन जानत, करन लगे ठकुराई
छलिये जानत लोग लुगाई
मात जसोदा ऊखल बाँधे, रोनी सूरति बनाई,
वे दिन अपने भूलि गये सब, करन लगे ठकुराई
कुछ करलो याद कन्हाई