भक्ति भाव
राणाजी! म्हे तो गोविन्द का गुण गास्याँ
चरणामृत को नेम हमारे, नित उठ दरसण जास्याँ
हरि मंदिर में निरत करास्याँ, घूँघरिया धमकास्याँ
राम नाम का झाँझ चलास्याँ, भव सागर तर जास्याँ
यह संसार बाड़ का काँटा, सो संगत नहिं करस्याँ
‘मीराँ’ कहे प्रभु गिरिधर नागर, निरख परख गुण गास्याँ