अभिन्नता
राधा! मैं हरि के रंग राँची
तो तैं चतुर और नहिं कोऊ, बात कहौं मैं साँची
तैं उन कौ मन नाहिं चुरायौ, ऐसी है तू काँची
हरि तेरौ मन अबै चुरायौ, प्रथम तुही है नाची
तुम औ’ स्याम एक हो दोऊ, बात याही तो साँची
‘सूर’ श्याम तेरे बस राधा! कहति लीक मैं खाँची