अन्नकूट
रच्यौ अन्नकूट विधिवत् है ब्रज में पाक बनाये
गोप गोपियाँ ग्वाल-बाल, मन मोद बढ़ाये
मीठे और चरपरे व्यंजन, मन ललचाये
गिनती हो नहीं सके, देख सब ही चकराये
तुलसी दल की पुष्पमाल गोवर्धन पहने
चंदन केशर तो ललाट पे, शोभित गहने
मोरपंख का मुकट, गले में तो वनमाला
गोवर्धन ये नहीं, किन्तु है नंद के लाला
भेद यही, जयकार करें-गिरिराज हमारे
एकमात्र ब्रज वासिन के ये ही रखवारे
हाथ जोड़ नंदराय, दीन व्है ध्यान धरत है
प्रत्यक्ष हो गिरिराज, प्रेम से भोज करत है

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *