दर्शन की प्यास
प्रानधन! सुन्दर श्याम सुजान
छटपटात तुम बिना दिवस निसि, पड़ी तुम्हारी बान
कलपत विलपत ही दिन बीतत, निसा नींद नहिं आवै
स्वप्न दरसहू भयौ असंभव, कैसे मन सचु पावै
अब मत देर करो मनमोहन, दया नैकु हिय धारौ
सरस सुधामय दरशन दै निज, उर को ताप निवारौ