शरणागत
प्रभु तेरा पार न पाया
तूँ सर्वज्ञ चराचर सब में, तू चैतन्य समाया
प्राणी-मात्र के तन में किस विधि, तू ही तो है छाया
जीव कहाँ से आये जाये, कोई समझ न पाया
सूर्य चन्द्रमा तारे सब में, ज्योति रूप चमकाया
यह सृष्टि कैसी विचित्र है, उसमें मैं भरमाया
‘ब्रह्मानंद’ शरण में तेरी, छोड़ कुटुंबी आया