शरणागति
प्रभु शक्ति प्रदान करो ऐसी, मन का विकार सब मिट जाये
चाहे निंदा हो या तिरस्कार, मुझको कुछ नहीं सता पाये
भोजन की चिन्ता नहीं मुझे, जब पक्षी जी भर खाते ही
मुझको मानव का जन्म दिया, तो खाने को भी देंगे ही
बतलाते हैं कुछ लोग मुझे, अन्यत्र कहीं सुख का मेला
देखा तो कुछ भी नहीं मिला, बस धोखे का था वह खेला
दुनियादारी का बोझ छोड़, प्रभु आया शरण तुम्हारी मैं
प्रभु दीनों के तुम रखवाले, विश्वास अडिग मेरा तुम में