भक्त-वत्सल भगवान
प्रभुजी तुम भक्तों के हितकारी
हिरणाकश्यप ने भक्त प्रहलाद को कष्ट दिया जब भारी
नरसिंह रूप लिये प्रभु प्रकटें, भक्तों के रखवारी
जभी ग्राह ने पकड़ा गज को, आया शरण तुम्हारी
सुन गुहार के मुक्त किया गज, भारी विपदा टारी
दुष्ट दुःशासन खींच रहा था, द्रुपद-सुता की साड़ी
दौड़े आये लाज बचाई, हे श्रीकृष्ण मुरारी
भई अहिल्या शिला शापवश, जो गौतम ऋषि नारी
चरण छुआ उद्धार किया था, दीर्घ आपदा टारी
पृथा-पुत्र के बने सारथी, कौरव-सेना हारी
करुणा सागर आओ आओ, राखो हमारी