विनय
पतित पावन बिरद तुम्हारो, कौनों नाम धर्यौ
मैं तो दीन दुखी अति दुर्बल, द्वारै रटत पर्यौ
चारि पदारथ दिये सुदामहि, तंदुल भेंट धर्यौ
द्रुपद-सुता की तुम पत राखी, अंबर दान कर्यौ
संदीपन को सुत प्रभु दीने, विद्या पाठ कर्यौ
‘सूर’ की बिरियाँ निठुर भये प्रभु, मेरौ कछु न सर्यौ

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