जगदीश स्तवन
निर्बल के प्राण पुकार रहे, जगदीश हरे जगदीश हरे
साँसों के स्वर झंकार रहे, जगदीश हरे जगदीश हरे
आकाश हिमालय सागर में, पृथ्वी पाताल चराचर में
ये शब्द मधुर गुंजार रहे, जगदीश हरे जगदीश हरे
जब दयादृष्टि हो जाती है, जलती खेती हरियाती है
इस आस पे जन उच्चार रहे, जगदीश हरे जगदीश हरे
तुम हो करुणा के धाम सदा, शरणागत राधेश्याम सदा
बस मन में यह विश्वास रहे, जगदीश हरे जगदीश हरे
Best voice from the soul……..
Extremly buitiful……
Indeed!
mast yar
इस भजन के लेखक कौन हैं। 15-20 वर्ष पहले मैने किसी पत्रिका में पढ़ा था कि यह भजन किसी मुसलिम कवि द्वारा लिखा गया है जो मुरादाबाद के निवासी हैं। यदि उनका नाम किसी को ज्ञात हो तो अवगत करायें ।
खोजने पर मिला। लेखक स्वर्गीय राजेन्द्र यादव ने एक लेख में इस भजन के रचनाकार के नाम का उल्लेख किया था। भजन *निर्बल के प्राण पुकार रहे* के रचनाकार मास्टर फिदा हुसेन मोरादाबाद (जन्म १८९९- मृत्यु १९९९) हैं। इनका जीवन परिचय जो मैने काफी समय पहले पढ़ा था, गूगल पर भी मिल जायेगा।
गायक लोग अब भजन में अपना नाम जोड़ कर गाते रहते हैं।
I’m 70 year old. My Grand Mother use to sing this brazen. She expired in 1961, I forgot some of its lines, asked other elders but they couldn’t help; today my wife insisted to try on Google. Thank God I got it.
My wife is so happy, so I’m.
श्री राधा
अति उत्तम,जब मैं 6 या 7 साल का था,लगभग 35 साल पहले तो ये भजन सुनता था घर मे। फिर बड़े हुए,ध्यान नहीं था। आज अचानक वह स्मृति आयी कि कोई बहुत खूबसूरत सा भजन”जगदीश हरे,जगदीश हरे” होता था,सर्च किया मिल गया। बहुत सुखद और तृप्त करने वाला भजन। शुक्रिया 🙏🙏