मुख में सृष्टि
नंदहि कहत जसोदा रानी
माटी कैं मिस मुख दिखरायौ, तिहूँ लोक रजधानी
स्वर्ग, पताल, धरनि, बन, पर्वत, बदन माँझ रहे आनी
नदी-सुमेर, देखि भौंचक भई, याकी अकथ कहानी
चितै रहे तब नन्द जुवति-मुख, मन-मन करत बिनानी
सूरदास’ तब कहति जसोदा, गर्ग कही यह बानी