बाल क्रीड़ा
नंद-घरनि! सुत भलौ पढ़ायौ
ब्रज-बीथिनि पुर-गलिनि, घरै घर, घात-बाट सब सोर मचायौ
लरिकनि मारि भजत काहू के, काहू कौ दधि –दूध लुटायौ
काहू कैं घर में छिपि जाये, मैं ज्यों-त्यों करि पकरन पायौ
अब तौ इन्हें जकरि के बाँधौ, इहिं सब तुम्हरौ गाँव भगायौ
‘सूर’ श्याम-भुज गहि नँदरानी, बहुरि कान्ह ने खेल रचायौ