श्रीकृष्ण प्राकट्य
नैन भर देखौं नंदकुमार
जसुमति कोख चन्द्रमा प्रकट्यो, जो ब्रज को उजियार
हरद दूब अक्षत दधि कुमकुम मंडित सब घर द्वार
पूरो चौक विविध रंगो से, गाओ मंगलाचार
चहुँ वेद-ध्वनि करत मुनि जन, होए हर्ष अपार
पुण्य-पुंज परिणाम साँवरो, सकल सिद्धि दातार
गोप-वधू आनन्दित निरखै, सुंदरता को सार
दास ‘चतुर्भुज’ प्रभु सुख सागर गिरधर प्रानाधार