हृदयेश्वर श्याम
मोहि तज कहाँ जात हो प्यारे
हृदय-कुंज में आय के बैठो, जल तरंगवत होत न न्यारे
तुम हो प्राण जीवन धन मेरे, तन-मन-धन सब तुम पर वारे
छिपे कहाँ हो जा मनमोहन, श्रवण, नयन, मन संग तुम्हारे
‘सूर’ स्याम अब मिलेही बनेगी, तुम सरबस हो कान्ह हमारे