प्रभाती
मोहन जागि, हौं बलि गई
तेरे कारन श्याम सुन्दर, नई मुरली लई
ग्वाल बाल सब द्वार ठाड़े, बेर बन की भई
गय्यन के सब बन्ध छूटे, डगर बन कौं गई
पीत पट कर दूर मुख तें, छाँड़ि दै अलसई
अति अनन्दित होत जसुमति, देखि द्युति नित नई
जगे जंगम जीव पशु खग, और ब्रज सबई
‘सूर’ के प्रभु दरस दीजै, अरुन किरन छई

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