शरणागति
मो सम कौन कुटिल खल कामी
जेहिं तनु दियौ ताहिं बिसरायौ, ऐसौ नोनहरामी
भरि भरि उदर विषय कों धावौं, जैसे सूकर ग्रामी
हरिजन छाँड़ि हरी-विमुखन की, निसिदिन करत गुलामी
पापी कौन बड़ो है मोतें, सब पतितन में नामी
‘सूर’ पतित को ठौर कहाँ है, सुनिए श्रीपति स्वामी
Isn’t this the bhajan that Mahatma Ghandhiji mentioned in his autobiography in the introduction ( prastavna)..?
Yes