अद्वितीय प्रेम
मेरो मन अनत कहाँ सुख पावै
जैसे उड़ि जहाज को पंछी, फिरि जहाज पर आवै
कमल नैन को छाड़ि महातम और दैव को ध्यावै
परम गंग को छाड़ि पियासों, दुर्मति कूप खनावै
जिहिं मधुकर अंबुज रस चाख्यौ, क्यों करील-फल खावै
‘सूरदास’ प्रभु कामधेनु तजि, छेरी कौन दुहावै