बालकृष्ण प्रति प्रेम
मनमोहन हम को अति प्यारे
बार-बार किलकारी मारे, चले कन्हैया घुटनों से
ब्रज-वधुएँ आनन्दित होकर, उसे लगायें छाती से
कहें-इसे हम जभी देखतीं, प्यार उमड़ता हम सबको
रोक नहीं पाती उमंग को, सुध-बुध रहे नहीं हमको
कितनी बार गोद में लेतीं, किन्तु न मन ही भरता है
धन्य प्रेम इनका कान्हा प्रति, कहीं न इसकी समता है